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Garhwali language Garhwali Bhasha Kaise boli Jaati hai |
गढ़वाली भाषा कैसे बोली जाती है?
गढ़वाली भाषा सामान्यतः एक सरल भाषा है इस भाषा को हिंदी तरीके से बोला जाता है इसमें कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो हिंदी से मेल नहीं खाते हैं और अधिक से अत्यधिक शब्द हिंदी से मेल खाते नजर आते हैं इसलिए यह बहुत ही आसान भाषा है और इसे हर कोई आसानी से सीख सकता है
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गढ़वाली भाषा में नमस्ते को क्या बोलते है
गढ़वाली भाषा में नमस्ते को समन्या कहा जाता है, या फिर इसे स्यवा -सौली भी कहा जाता है।पुराने बुजुर्ग हमेशा गढ़वाली भाषा में समन्या शब्द का प्रयोग ही नमस्ते के तौर पर किया करते थे,जमाने के साथ साथ इससे लोगों ने छोड़ना शुरू किया और प्रणाम और नमस्ते पर आकर यह बात अटक गई।अंग्रेजी का जमाना है तो लोगों ने गुड मॉर्निंग गुड इवनिंग ऐसे शब्दों को लाना शुरू कर दिया है इससे नमस्ते और सामने बोलना तो बिल्कुल बंद ही हो गया है
स्यवा -सौली = प्रणाम,नमस्ते
समन्या =प्रणाम नमस्ते
गढ़वाली लोग कैसे होते हैं
गढ़वाली लोग बहुत ही शांत प्रिया होते हैं, यह कठिन परिश्रमी और ईमानदारी की मिसाल देते हैं, इनके चेहरे गोल होने के साथ गोरे या फिर सावले रंग के होते हैं,
इन्हें लड़ाई -झगड़े आदि चीजों से कोई मतलब नहीं होता है. जो खुद में मस्त रहने वाले होते हैं. अतिथि का सम्मान कैसे करना है यह बखूबी जानते हैं. रिश्तेदारी शादीयों मे इनका अलग ही मिजाज होता है. यह प्रकृति के धनी होते हैं. यहां पर स्त्री किसान की भूमिका निभाती है और पुरुष धन अर्जित करने का कार्य करता है. यह अत्याधिक धार्मिक होते हैं।
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गढ़वाली भाषा कितनी पुरानी है?
10वीं शताब्दी से प्राप्त शिला लेखों,मुद्रा, शास्त्र और मोहरों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह 10 वीं शताब्दी से पहले ही उत्तराखंड में गढ़वाली भाषा अस्तित्व में आई होगी..
10वीं शताब्दी में जो मुद्राशास्त्र, शाही मुहरों, तांबे की प्लेटों पर अभिलेख और शाही आदेशों और अनुदानों वाले मंदिर के पत्थर पाए गए है। एक उदाहरण 1335 ईस्वी में देव प्रयाग में राजा जगतपाल का मंदिर अनुदान शिलालेख है। गंतव्य है की उस वक़्त गढ़वाली भाषा ही राजकीय भाषा में स्वीकार की जाती थी.
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