Uttarakhand Ka Logo
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उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश के 13 हिमालयी जिलों को अलग करके किया गया था, जिससे यह भारतीय गणतंत्र का 27वां और हिमालयी राज्यों में से 11वां राज्य बना। 1 जनवरी 2007 को इसका नाम 'उत्तरांचल' से बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया।
उत्तराखंड राज्य सरकार ही उत्तराखंड के logo का नाम है, यह एक सामान्य सा प्रश्न है, कई बार हम ऐसे आसान से प्रश्न को बहुत ही जटिल बना देते हैं, यह उत्तराखंड सरकार के लिए बनाया गया है तो इसे उत्तराखंड सरकार या UTTRAKHAND GOVERNMENT LOGO ही कहा जाता है
गठन के बाद, वर्ष 2001 में प्रदेश सरकार ने राज्य के लिए प्रतीक चिन्हों का निर्धारण किया। राज्य चिन्ह विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि यह उत्तराखंड के भौगोलिक स्वरूप को दर्शाता है। इस चिन्ह में एक गोलाकार मुद्रा है जिसके भीतर तीन पर्वत चोटियों की श्रृंखला और उनके नीचे गंगा की चार लहरें दिखाई गई हैं। बीच वाली चोटी अन्य दोनों चोटियों से ऊंची है, और उसके मध्य में अशोक का लाट अंकित है। अशोक के लाट के ठीक नीचे, मुण्डकोपनिषद से लिया गया राष्ट्रीय आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' अंकित है। यह प्रतीक चिन्ह राज्य की प्राकृतिक सुंदरता, पवित्र नदियों और राष्ट्रीय गौरव का प्रतिनिधित्व करता है।
उत्तराखंड राज्य: इतिहास, नाम परिवर्तन और राज्य प्रतीक चिन्ह की कहानी
भारतवर्ष की सांस्कृतिक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक विरासत में उत्तराखंड का विशेष स्थान है। हिमालय की गोद में बसा यह राज्य न केवल अपनी अद्वितीय भौगोलिक स्थिति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की लोक परंपराएं, पवित्र नदियां और सुरम्य वादियां भी इसे एक अनुपम पहचान देती हैं। उत्तराखंड का गठन, नाम परिवर्तन और इसका प्रतीक चिन्ह – ये तीनों राज्य के विकास और पहचान के महत्वपूर्ण पहलू हैं, जिन पर विचार करना न केवल इतिहास को समझना है, बल्कि एक नए राज्य की आत्मा को महसूस करना भी है।
राज्य गठन का इतिहास
उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवम्बर 2000 को हुआ था। यह गठन उत्तर प्रदेश के 13 पर्वतीय जिलों को अलग कर के किया गया, जिनमें प्रमुख रूप से उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, देहरादून, हरिद्वार, पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा, नैनीताल, चंपावत और ऊधमसिंह नगर शामिल थे। इस ऐतिहासिक दिन को भारतीय गणराज्य का 27वां राज्य और 11वां हिमालयी राज्य अस्तित्व में आया।
इस अलग राज्य की मांग लंबे समय से की जा रही थी। क्षेत्रीय विषमताएं, भौगोलिक दुर्गमता और विकास की धीमी गति ने यहां के निवासियों को एक अलग प्रशासनिक इकाई की आवश्यकता का एहसास कराया। वर्षों के आंदोलन, जनसंघर्ष और बलिदानों के बाद आखिरकार यह सपना साकार हुआ।
उत्तरांचल' से 'उत्तराखंड' तक का सफर
राज्य गठन के समय केंद्र सरकार ने इस नवगठित राज्य का नाम 'उत्तरांचल' रखा। हालांकि, राज्य की जनता विशेष रूप से यहां की जनजातियों और लोक संस्कृति से जुड़े लोग इसे सदियों से 'उत्तराखंड' के नाम से जानते और पुकारते आ रहे थे। 'उत्तराखंड' नाम संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है — "उत्तर का भाग" या "उत्तर दिशा का पवित्र क्षेत्र"। यह नाम अपने आप में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गहराई लिए हुए है।
जनआंदोलनों और जनभावनाओं को सम्मान देते हुए राज्य विधानसभा ने 2006 में इसका नाम आधिकारिक रूप से बदलने का प्रस्ताव पारित किया। अंततः 1 जनवरी 2007 को भारत सरकार द्वारा 'उत्तरांचल' को बदलकर 'उत्तराखंड' कर दिया गया। यह परिवर्तन केवल नाम का नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक अस्मिता और ऐतिहासिक पहचान की पुनर्प्राप्ति थी।
राज्य प्रतीक चिन्ह: पहचान का प्रतीक
उत्तराखंड के राज्य प्रतीक चिन्ह की रचना 2001 में राज्य सरकार द्वारा की गई थी। यह चिन्ह केवल एक आधिकारिक मुहर नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक भी है।
इस चिन्ह में एक गोलाकार मुद्रा(चक्र) है, जिसके भीतर तीन पर्वत चोटियों की श्रृंखला चित्रित की गई है। इन तीनों में मध्य की चोटी सबसे ऊंचीदिखाई गई है, जो राज्य के हिमालयी भू-स्वरूप का प्रतीक है। इन पर्वतों के नीचे गंगा नदी की चार लहरें दर्शाई गई हैं, जो उत्तराखंड की धार्मिक एवं भौगोलिक महत्ता को दर्शाती हैं क्योंकि गंगा का उद्गम स्थल (गंगोत्री) भी यहीं है।
मध्य की सबसे ऊँची चोटी पर अशोक का लाट (Ashoka Pillar) अंकित है, जो राष्ट्रीय गौरव और भारतीय गणराज्य की एकता का प्रतीक है। अशोक स्तंभ के नीचे 'सत्यमेव जयते' (सत्य की ही विजय होती है) — यह वाक्य मुण्डकोपनिषद से लिया गया है और भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य भी है।
इस प्रतीक चिन्ह की संरचना एक साथ कई भावनाओं और विशेषताओं को समेटे हुए है
प्राकृतिक सौंदर्य (हिमालय)
धार्मिक पवित्रता (गंगा)
राष्ट्रीय एकता (अशोक लाट)
सत्य और न्याय की भावना (सत्यमेव जयते)
राज्य चिन्ह का भावात्मक महत्व
उत्तराखंड का प्रतीक चिन्ह केवल एक प्रशासनिक पहचान नहीं है। यह यहां के लोगों की भावनाओं, उनकी विरासत और उनके स्वाभिमान का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमें याद दिलाता है कि यह राज्य केवल एक राजनीतिक इकाई नहीं है, बल्कि एक जीवंत संस्कृति, आध्यात्मिक परंपरा और प्रकृति की अद्वितीय देन है।
यह चिन्ह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और हर उत्तराखंडी को गर्व और प्रेरणा का अहसास कराता है। चाहे वह गांव की तलहटी में रहने वाला किसान हो या किसी शहर में पढ़ने वाला छात्र — यह चिन्ह एक सामूहिक पहचान का प्रतीक बन चुका है।
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